तर्ज-धन धन रामा पीर ने
बाला बजरंगी वीर रे लजिया राकज्यो ॥
हार्या का सुण आज्यो हेला, करत हाक हनुमंत हटीला,
आयने भगाज्यो भीड़ रे ॥ लजिया..॥1॥
सिमरूँ थाँने साँज सवेरी, मारी अरज सुण करहू न देरी,
मारी तो थाँने ही पीर रे ॥ लजिया..॥2॥
कलजुग केरो बाजे बायरो, भगताँ ने थारोई सायरो,
आयने बंदवाज्यो धीर रे ॥ लजिया..॥3॥
पग - पग उपर चूकत चाकर बणिने माप करत हे ठाकर,
थें तो हो निरमल नीर रे ॥ लजिया�॥4॥
दन्यादारी ओगणगारी काया मारी सरण तिहारी,
नावड़ी लगात दीज्यो तीर रे ॥ लजिया ॥5॥
भरोसो "भेरव" न हे तिहारो अवगुण गारो पण हूँ थारो,
चरण कमल माही सीर रे ॥ लजिया�॥6॥