तर्ज – बरसी बरसी रे बरका बरसी सांवण…
वारी वारी रे बाबा वारी, बलिहारी नेजाधारी ने।
जटे उडे रे निसाण, रणुजे निरंकारी ने॥
चेत सुदी पाँचम ने आया, पालणिये पोडाया,
कंकू केरा पगल्या मांड्‍या पड़्या दूद उपणाया,
नेजा नंगारा सुल्टा बाज्या, नकळंग अवतारी ने ॥ रणुजे………॥1॥
बाळीनाथ की धुण्याँ धोकी, गेंदुड़ो धमकायो,
भेरुड़ा रागस ने मारयो, थळियाँ भार हटायो,
कर में भँवरयो भालो धार, भळक भळकारी ने ॥ रणुजे………॥2॥
राईका ने कियो जीवतो, सूखा बाग लगाया,
पड़ीयारा ने परचा देने, बाई सुगणा ने लाया,
भाणेजा ने जीवत कीनो, प्राण उबारी ने ॥ रणुजे……………॥3॥
परच्या लेवण पाँच पीर, मक्‍का सूँ चल कर आया,
पीरां का प्याला मंगवाने, दूद कटोरा पाया,
बाज्या पीरा हाते पीर, आलम अदकारी ने ॥ रणुजे…………॥4॥
बाळदियो बाळद भर लायो, भगताँ ने इतवारी,
पूँछे रामदे सांच न बोल्यो, मिसरी खारी कर डारी,
धोक्या धणी ने तो वा मीठी, कीदी खारी ने ॥ रणुजे ………॥5॥
बोयतिया बाण्या के आया, समंदाँ के मजधार,
जाँज डुबण लागी भँवरा, धणियाँ सुणी पुकार,
चोपड़ रमताँ आप उबारी, भुजा पसारी ने ॥ रणुजे…………॥6॥
दरजी खातर दोड़न आया, हरजी का दुक मेंट्या,
परदो लेने परचा दीना, हरबूजी सूँ भेट्‍या,
"भेरया" करत परणाम, धोळे असवारी ने ॥ रणुजे……………॥7॥