तर्ज- ऊँचो-ऊँचो घाघरो मारी जाजर
हरिया हरिया रूँकड़ा में हरियाळी मझधार,
आयेंगे राम मेरे में करती हूँ नित इन्तजार।
में अधम अनाड़ी नार रे, में भीलण जात गंवार रे,
मारे मन माळा के हार रे, सब जग के सरजण हार ॥ आयेंगे……
राम दया के सागर की में वन में बाट निहारूँ,
आंगण उजळो करूँ हमेंसाँ, नित की पंथ बुहारूँ,
उण्डी-उण्डी आँक लगाने देकूँ नजर पसार॥ आयेंगे………॥1॥
घास माटी की कुटिया माही आंगण धरूँ चटाई,
पान फूल का करूँ बिछाणा बेटेला रघुराई,
भीलण के घर भोग बेर के कब जीमेंगे आर॥ आयेंगे……॥2॥
सजा धजा करके यूँ कुटिया, देखूँ बेर-बेर,
मीटा-मीटा छाक- छाक ने लावूँ भोग हेर हेर,
खाटे मीटे छाँट ने न्यारे राकूँ, जोळी में डार॥ आयेंगे……॥3॥
गुरू देव के वचनों पर हे भारी विस्वास ,
भूडी हो गई नेम निभाते दरसण की मन आस,
"भेरव" हो भव पार नायकर गुरूवाणी गंगाधार॥ आयेंगे……॥4॥