तर्ज (ये दो दिवाने दिले के, चलो हे देखो मिला के)
जब जबर बली बल बंका, माँ सिया खोजने लंका
चला हे चला हे हनुमान॥टेर॥
सो योजन की एक फलडु की, कुदी गयो गरयाद समन्द की॥२॥
जा पहुँचा रण बंका, भई असुरों के मन संका॥चले हे॥
रघुकुल महिमा की सुधपाई, तरुबर से मून्दरी छिटकाई॥२॥
दे परिचय कपि उछळा, फळ फूलों पे मन मचळा॥चले हे॥
फल खाकर बनबाग उजाड़ा, अरि सूत अक्सय को ले पछाड़ा॥२॥
कूद पड़ा कर हँका, असुरो का कीना फंका॥चले हे॥
मेघनाद ने बाळ जती को, जाय के सोया लंकपति को॥२॥
दे नोपत पे डंका, सोने की जाळी लंका॥चले हे॥
अपर बली जब कुदे समंदर, भेरव आय गयो जा बन्दर।
करते रावण की निन्दा, कपि पहुँच गये किसकिन्धा॥
चले हे चले हे हनुमान॥