तर्ज–धन धन रामा पीर लजिया
समरथ सतगरू आप सरणे राकज्यो, पल - पल सिमरूँ जाप, सरणे राकज्यो ॥
सत साहेब हे मारे सहाई, भव सागर में ओर हे नाही,
तुम ही मायर बाप ॥ सरणे॥1॥
भवसागर रो थाह ना आवे, गरु बिना कुण पार लगावे,
मेटो तरिविध ताप ॥ सरणे॥2॥
में अग्यानी मद में फूला, माया के वस होकर भूला,
काटो करमन काप ॥सरणे॥3॥
गुराँ ग्यान की घूँटी पिलादो, चोरासी का चक्कर मिटादो,
हरो जनम जनम का पाप ॥ सरणे॥4॥
दस दोस ने माप करादो, पाँच पच्चीस ने मार भगादो,
देय ग्यान री थाप ॥ सरणे॥5॥
सेण सबद का देकर बाना, "भेरया" ने लिकदो परवाणा,
अमर पटा पे छाप ॥ सरणे॥6॥