तर्ज-साँवरिया थारी मुरली ने
ओला गोटे-गोटे भांग डळी हरियाळा बागाँ में रे रसियाळा बागाँ में ॥
गेर गुमाळा बड़ल्या केरी गेरी-गेरी हे छाँयाँ,
बेटा भोळानाथ नागदी महादेव री माया,
कंचन केरी काया वे भगती बेरागा में ॥ रे....॥1॥
सिखर तणा सिवालय उपर भगवाँ ध्वज फरुके हे,
सिव रात की सिव पूजा में डेरू डाँक डरूके हे,
ढोल धड़ूके आरतड़्याँ वे हर हर रागाँ में ॥ रे....॥2॥
कळ-कळ करती नागदी वा निरमळ वेवे पाणी सूँ,
चातक मोर पपिहा बोले, मन हर लेवे बाणी सूँ,
भोळा संकर लडर लेय पड़िया रेवे नागा में ॥ रे ॥3॥
पंचकुण्ड में नत कोई नहावे ज्याँके लिक्या भाग में,
सुन बाग अरू चमन बाग अरू बाबाजी रा बाग में,
सोरत का मेळा में रमें आदे फागाँ में ॥ रे....॥4॥
सिवजी बेटा पाट पीताम्बर संग गोरजा मेंया रे,
दुनिया जोड़े हात नाथ के भगत पड़्या हे पेया रे,
दरसण पावे कोई बिरला "भेरव" भागाँ में ॥ रे॥5॥