तर्ज- रसिया
मन रे मनक जूण में आय कई न कई करजा रे करजा,
ममता मार जार जरणा ने जरजा रे जरजा॥
च्यार खान मूँ मनक जूण का हे ऊँचा दरजा,
ग्यान जोत कर भरम अंदारो चरजा रे चरजा॥ मन………॥1॥
मान मरोड़ करे थूँ काँपे, लळजा रे लळजा,
लागे राम को जेलो, गरब सब गळजा रे गळजा॥ मन……॥2॥
घड़ो पाप को फूटे एक दन, भरजा रे भरजा,
काया की कर राक, धरा पर धरजा रे धरजा॥ मन………॥3॥
भरम छोड ने जाय भड़े तो काम सबी सरजा,
गुराँ पीराँ सूँ पाय पदारत तरजा रे तरजा॥ मन………॥4॥
मोह माया की हाय लाय, मूँ टरजा रे टरजा,
किया भयंकर पाप काळ सूँ डरजा रे डरजा॥ मन………॥5॥
दे दे जीवन मोड़ खोड़ सूँ फरजा रे फरजा,
नहीं तर "भेरया" नाक डुबो कर मरजा रे मरजा॥ मन…॥6॥