(सतगुरु वंदना) तर्ज- सावण आयो रे
कटे जग जंजाळो रे, सतगरू सरणा में चालो रे,
सरणा चालो चरणा माही, बेगा बेगा हालो रे॥
पंच तत्व को देवळ द्वारो तिरगुण तीन तिबारी,
सहस कमल मकमल की सेजाँ, गादी पाट गुरारी,
बारी बंद कर नाळो रे॥ सत………॥1॥
समदरिया सो पेटो समरथ, आकासाँ सस छाँयाँ,
हिमाळे सी सील वरति, हे गंगा जेसी काया,
समा या धरती रो थाळो रे॥ सत……॥2॥
पवना जेसी पवितर भावना, रवि समान दरसटी
अग्नि ज्यूँ हे सबळ सामरथ, पाळे सब सम सरस्टी
वरस्टी ग्यान बरसाळो रे॥ सत………॥3॥
दया दान सत समा सरलता पंचगव्य ये पाले,
काम, करोद, मद, लोब, मोह, तप, धुप्या पच धकाले,
पाले गुरू गम प्यालो रे॥ सत………॥4॥
गुरू समान दाता नहीं दूजा, मजधारा के मजरे,
भव तारण हे जीव उबारण, नरबे "भेरव" भज रे,
धज धणिया ने धालो रे॥ सत………॥5॥