एक माराज हा घणा ज्ञानी हा वे वांका नके कोई बी जातो हो वो कदी उदास वेन ने जातो हो। एक दन वां माराज नके एक मनक आयो हो वो वाँ माराजऊँ घणी देर तक दोई जणा ज्ञान की बाताँ किदी।पछे वीं मनक माराज ने क्यो के माराज "मूँ आजकालाँ एक भरम में पड़्यो तको हूँ। मूँ यो ते ने कर सकरयूँ के कई हऊ हे अन कई गलत हे"। माराज वीं मनक ने पूरी बात बताबा का बाते क्यो हो तो वीं क्यो तो वो केबा लागो, के माका देस में पेल्याऊँ लगान आज तक घणा संत मात्मा व्या हा पण वाँमें आत्मा अन परमात्मा के बाते वाँका बिच्यार न्यारा-न्यारा हे। कोई केवे के आत्मा अन परमात्मा में कई भेद कोइने हे अन वे दोई एक हे। कोई केवे के आत्मा अन परमात्मा दोई न्यारा-न्यारा हे। कोइ ईं बात पे विस्वास करे के परमात्माऊँ न्यारो ओरी कोई राज कोइने। पण को खुदा खुद में भगवान हमजे। यो सब मूँ भण-हूणन मूँ डापा में पड़ जऊँ के कस्यो बिच्यार सई हे। अन मारे यो जाणणो जरूरी हे आप मने बतावो? माराज क्यो "कटई दूजी जइगाँ जाई तो थने ईंको अरत ने मली। माराज वीं मनक ने क्यो के थूँ थारा मीने ईस हमाळ के थूँ कुण हे? खुद ने बस में राकज्ये थने सब ध्यान पड़जई"। माराज का उत्तरऊँ वीं मनक को भरम भागग्यो हो हाँच को ज्ञान मलग्यो हो। आपणा-आपणा करमाऊँ सब मनक फळ भोगे।