तर्ज– तिरलोकी को नाथ जाट के बणग्यो हाळी रे…
भोळे नाथ भगवान, महिमा थाँकी न्यारी रे,
माँ गोराँ के काम भेस मोची को धारी रे ॥
हेमाचळ में जाय रचायो, सिवजी माया बजार रे,
रत्‍न जड़ी मोजड़ीयाँ बेंचे, मोत्याँ जड़ी लक च्यार रे,
देक मोजड़ी गोराँ हरसी , मन मन में भारी रे । माँ गोराँ॥1॥
खूब अनोकी थारी मोजड़्याँ, कर बणजारा भाव रे,
भोळा नाथ ने मूँ दिकास्यूँ, मन में घणो उमाव रे,
मोत्याँ जड़ी को मोल बता दे, लागे घणी प्यारी रे । माँ गोराँ॥2॥
मोत्याँ जड़ी अनमोल मोजड़ी, पेरे घर की नार रे,
सब सूँ बाली चीज देवो तो, में बेंचण ने त्यार रे,
मारो मनड़ो मोयो अंगूटी, हात में थारी रे । माँ गोराँ॥3॥
हात अंगूटी जान सूँ बाली, दी सिवजी सोगत रे,
घर जाता ही सिवजी पूँछे, कई बणउंला बात रे,
ले ले नोलक हार मान जा, बात हमारी रे । माँ गोराँ॥4॥
छलना में आ गई गोरजा, दे दी अंगूटी प्यारी रे,
लेय अंगूटी सिवजी चाल्या, लीला समेंटी सारी रे,
आय सिंहासण ब्याव में बेट्‍या, लीलाधारी रे । माँ गोराँ॥5॥
संकर पूँछे कठे गोरजा, मारी अंगूटी प्यारी रे,
पूनम चाँद माँ गोराँ देकी, हात में सिवजी पेरी रे,
मन ही मन में समझी गोराँ, बाताँ गोराँ सारी रे । माँ गोराँ॥4॥