तर्ज– सूती नर आयो रे जंजाळ…
सीताँ जी दुकड़ो भोग्यो, वेसो कोई ना भोगे जग के माय,
विधाता थारी कलम क्यों नी रुकी ए॥
परण्या ने व्या दन च्यार जी, कोई पती संग चाली वनवास । विधाता॥1॥
सहेल्याँ रो छूट्‍यो हेत जी, कोई पिहर रो टूट्‍यो प्रेम । विधाता॥2॥
रावण दुक घणो दियो, पण काई करे इकली वा नार । विधाता॥3॥
आँख्याँ में आँसुड़ा आ गीया, जद पति बोल्या दो अगनी साख । विधाता॥4॥
राम गये बन में एक बार, पण सीताँ गई वन दो बार । विधाता ॥5॥
पारासर कहे प्रभु का नाम ही कोई, कलजुग में भगताँ री नाव । विधाता॥6॥