तर्ज – थाळी भरने लाई खीचड़ो
राम राके ज्यूँई रेणो भाया, मतना छोडो दायरो,
ढळती मळती छाँयाँ या तो, हरतो फरतो बायरो ॥
रोग बी काट्याँ सूँ कटे, रात बी काट्याँ सूँ कटे,
गेलो बी काट्याँ सूँ कटे, बेमारी बी काट्याँ सूँ कटे ॥
रण बी काट्याँ सूँ कटे, दुक बी काट्याँ सूँ कटे,
बेरी बी काट्याँ सूँ कटे, बको बी काट्याँ सूँ कटे ॥
बिन हिम्मत कीमत नहीं ना नर की कटण देक मत कायरो ॥ ढळती……॥1॥
तन बी चलतो मन बी चलतो, जोबन बी दो दन को यार,
धन बी चलतो दन बी चलतो, ससी भाण चलतो संसार,
दुक बी चलतो सुक बी चलतो, जग जीवन हे जळ की धार,
जीवन हे घाट्याँ को गेलो, कब चडाव तो कब उतार,
आपत में ईस्वर को जेलो, एक हरी को सायरो ॥ ढळती……॥2॥
कदी नाव गाडी तो भई, कदी गाडी में नाव रे,
दिन उगे दोपेर कदी तो, कदी पड़े भई साम रे ॥
कदी अमीरी कदी गरीबी, कदी स्वस्त कदी ताव,
कदी सियाळो कदी उनाळो, कदी चोमासो आव॥
च्यार दना को चोमासो भई, कद छाँयाँ कद तावड़ो ॥ ढळती॥3॥
गरीब गेलो गरीब गबरू, गरीब नीर बहा देगा,
गरीब घर की हाय बूरी हे, तुजे नरक में ढसा देगा,
गरीब को मतना सता रे भई, गरीब अगर कहीं रो देगा ।
गरीब के पाछे कोई खड़ा हे, वो जड़ाँ मूँळ से खो देगा।
हे "भेरव" धूप जायेगो यो आपाँई को आपरो ॥ ढळती॥4॥