तर्ज– धन बाबा जी धन बाबा जी रे
धन गुराजी धन गुराजी रे,
गुराँ पीराँ की जात एक हे, नेणा बरसत नूराँ रे ॥
अपने अपने हवारत खातर, हर कोई मानुस जीवे,
बलिहारी वाँ बिरला ने भई, पर हित मातो देवे रे ॥1॥
हरिनाम को साँचो धन हे, हरिजन साँचे कोई,
फूलड़ा तो फकीराँ पेर छडिया, अमीराँ के सिर नाई रे ॥2॥
साँस-साँस में आप समावे, ज्यूँ मेंदी रंग पाणी,
जणी साँस में सायब भेळा, वाँ सत पुरसाँ री बाणी रे ॥3॥
सब घट माही राम बसे भई, खाली घट ना कोई,
वाँ घट की बलिहारी वीराँ, ज्या घट परघट होई रे ॥4॥
या धरती का थळा उपरे, साँची सतगरू सेणी,
"भेरया" करले निरमल भगती, रख समदा सम सेणी रे ॥5॥