तर्ज–धन बाबाजी धन बाबाजी रे
शनि बाबा जी शनि बाबा जी रे ॥
चाँद ने लाग सूरज ने लागा, लागा नो लख तारा,
सालूँ साल में गरेण गळ्यो घर ससिया भाण दवार रे ॥1॥
नाळ खाळ नदियाँ ने लागा, लागा समंदर सारा रे,
रतनाकर का गरब गळया, कर दिदा जळ खारा रे ॥2॥
रोहित कँवर अन तारा हरिचंद, बिक गये तीनो पराणी,
बको पड़्यो हरिया रे मरगट, भर्यो डोम घर पाणी रे ॥3॥
राम ने लाग लक्समण ने लागा, लागा सीताँ नारी,
चवदा बरस तक बन बन भटक्या, भोगी विपदा सारी रे ॥4॥
रावण कुंभकरण ने लागा, लागा लंका नगरी सारी,
हनुमान सा जोदा अड़िया, लंक खाक कर डारी रे ॥5॥
करसण चन्द्र ने एसा लागा, मणी माथे जा राळी,
कोरव खपा पाण्डवाँ ने लागा, जाय हेमाळे गाळी रे ॥6॥
लागा राजा भूप भरतरी, जोग फकीरी धारी,
विक्रमादित्य में बको पटकियो, चोरंगिया कर डारी रे ॥7॥
मोटा देवाँ मोटा राजा, माटी हे संग माया,
दीन जाण "भेरया" पे दाता राको छतर छाँयाँ रे ॥8॥