तर्ज-रामदेव परणावे थें परणो भाटी हरजी
रामजी बुलावे थें आवो बाला वीर जी।।
सिवा इस्ट रो मंतर बावणियो, घोर निद्रा में लेग्यो अहिरावणियो,
माका अवध मासूँ ले लिया तीर जी॥ रामजी॥1॥
दुस्ट ले आयो माने तेकी पियाळा, थें कालन के हो महाकाला,
थाँका सिवा रे बाला कीने माकी पीड़ जी ॥ रामजी॥2॥
देवी के आगे माने बली चढावे, माका बालरी माने याद दिलावे,
थाँका सिवा रे बाला कीने माकी पीड़ जी ॥ रामजी॥3॥
राम लखन कटे - कटे रामादळ, कठे भरत सिया जुग ज्यूँ बीते पल,
हनुमंत के बना आज में हाँ अधीर जी ॥ रामजी...॥4॥
"भेरव" रे राम हनुमंत रट में, कपि सुमरताँ ही देवी रा मठ में,
रघुवर के चरणन में जाय टेक्यो सिर जी ॥ रामजी॥5॥