तर्ज–रावण मर्यो रे लंका में राजा
थोड़ो जग में जीणो काळजो धड़क-धड़क धड़के,
दरसण दे दिज्यो कल्याण माने पेर के तड़के॥
नाम सुणता कँवर कल्ला को दुसमण बी धड़के,
एकलिंग की धजा धण्या की फोजाँ में फड़के॥1॥
आंगी सोहे अंग उपरे , बंध्यो मोढको मुड़के,
गळ माही मोत्याँ री माळा घुड़ला पे चढके ॥2॥
कमर कटारो ढाल ढळकती भालो रळके,
शक्ति हे धारण हाताँ में खाण्डो खड़के ॥3॥
में सुण्यो कल्ला कँवर जी, अरियाँ सूँ अड़के,
पाप्याँ रो परले कर देवे, बादळ ज्यूँ कड़के॥4॥
दुक्याँ रा दोळा काटे, रोग रोग्याँ रो जड़के,
बांजड़िया बाळक्या माँगे, पंगल्याँ में पड़के॥5॥
गामा-गामा गाद्याँ थारी ढोलकियाँ धड़के,
देक चावला कळजुग केरा "भेरया" तो भड़के ॥6॥