तर्ज- जब आवेलो बलम बेरी
थारे जोड़ाँ-जोड़ाँ हात, मारा परथी रा नाथ,
मारा द्वारका रा नाथ, धीरे-धीरे हाको थोड़ी रथड़ी ने ॥
गेले-गेले गडरी में हाको मारा साँवरा,
उपट जावे रे थारा घुड़ला ये बावरा,
बान्द हाताँ में राको पकड़ी ने ॥ धीरे…………॥1॥
काँटा भाटा रे कूदे बंकट बाटाँ,
मारे फलांगा ये तो ओगट घाटा,
जटको रे लागो मारी नथड़ी ने ॥ धीरे………॥2॥
नाळा रे खाळा नद जाड़ी जाकडरिया,
छोड डगर ये तो कूदे डूंगरियाँ,
ठमको लागे रे माते रकड़ी ने ॥ धीरे…………॥3॥
गीताँ के रथ के नाथ पटे रे,
गावाँ गीतड़ला तो जीबाँ कटे छे,
धचक-धचक नाके छकड़ी ने ॥ धीरे…………॥4॥
अटीनू उछळ ने वटीने पड़ाँ छाँ,
रथ की रथ मूव कटीने गड़ा छां,
नीचे राको ने चाबुक लकड़ी ने ॥ धीरे………॥5॥
कांकण, गेंद गेणा तमण्या ने ढाबाँ,
माहेरा का गाबा कन जीबां ने ढाबाँ,
माहेरा की गाठी ढाबाँ गठड़ी ने ॥ धीरे………॥6॥
गरड़-धरड़ कड़के रथड़ा का चका,
छूटे छे छका माका थाँका कई लागे टका,
धीमी चलाता कई रथड़ी ने ॥ धीरे…………॥7॥
राधा रुकमण जी ने भूलां तो आई "भेरया" ,
गोळा रे डूँटी डगिया साँवरिया धीमा गेरिया,
पाटी बांध लो गाटी नसड़ी ने ॥ धीरे…………॥8॥