पंछीड़ा रे लाल, सूतो कईयां चादर ताण।
अब तो ओसर बीत्यो जावे, छोड़ पाछली बार।
बाळपणा हंस कर खेल गँवायो, दे दे गोदी ताण।
बाळसखा संग करी लड़ाई, छोडी सबकी काण।१।
जवान हुयो तब सादी कीनी, आडी फरगी जाण।
विंकी तो तूँ एक ने मानी, घर में घाल्यो घाण।२।
रोज-रोज थूँ फंस्यो जाळ में, तन कर लिन्यो हाण।
रस कस निकळ गाल बेटग्या, मिटगी सारी ताण।३।
कफ धाँसी दुक देबा लाग्या, मोत साँकड़ी जाण।
साटी लाटी ले ली हाताँ, अब भी हर ने जाण।४।
इतनी खारी होगी तुम में, अब तो कर कई काण।
दास ‘रुड़मल’ कत कर गावे, जाण सके तो जाण।५।